Wednesday 8 October 2014

मनजीत बावा Manjit Bawa

मनजीत बावा      

                                              







वेदप्रकाश भारद्वाज

समकालीन भारतीय कला में जिन कुछ कलाकारों का नाम अपने आप में एक फैशन बन गया है, मनजीत बावा उनमें प्रमुख हैं। आमतौर पर किसी भी कलाकार द्वारा, चाहे वह युवा ही हो, बुलाने पर मनजीत बावा उसकी प्रदर्शनी में पहुंचते जरूर थे। इसके अलावा भी प्रदर्शनियों में वे अक्सर मीडिया के आकर्षण का केंद्र रहते थे। यह भी एक तथ्य है कि कोई बीस-पचीस साल पहले कुछ युवा फैशन डिजाइनरों ने कला को अपने डिजाइन में इस्तेमाल करने की सोची तो उस समय रोहित बल ने मनजीत बावा की पेंटिंग को ही चुना था। अपने मित्र और चर्चित चित्रकार अमिताभ दास की प्रदर्शनी के उद्घाटन वाले दिन  जो चंद लोग उद्घाटन के निर्धारित समय से पहले गैलरी पहुंचे उनमें मनजीत बावा भी थे। वहीं पैलेट गैलरी के टेरेस पर मनजीत बावा से बातचीत का अवसर मिला। करीब पंद्रह-बीस मिनट तक उनसे कला और फैशन के रिश्तों के अलावा मौजूदा कला परिदृश्य और उनके मध्यप्रदेश, और उसमें भी विशेषरूप से इंदौर मांडू के अनुभवों की चर्चा हुई। जब मैंने उनसे फैशन डिजाइनर के साथ मिलकर काम करने के अनुभव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "मैं कभी भी पेंटिंग को फैशन के साथ जोड़ने का पक्षधर नहीं रहा। कोई बीस-पचीस साल पहले जब एक युवा डिजाइनर (रोहित बल) ने प्रस्ताव रखा कि वह मेरी पेंटिंग को लेकर कपड़े डिजाइन करना चाहता है तो मैंने यह सोचकर कि वह एक युवा है, उसे प्रोत्साहन मिलना चाहिए, मैंने अपनी पेंटिंग दिखा दी थीं। मैंने कह दिया था कि वह चाहे तो मेरी पेंटिंग को अपने डिजाइन किये कपड़ों में इस्तेमाल कर सकता है। मैंने सक्रिय भागीदारी से साफ इनकार कर दिया था। मैं मानता हूं कि पेंटिंग एक गंभीर काम है जिसका फैशन जैसे अगंभीर काम के साथ कोई सार्थक रिश्ता नहीं बन सकता। यही वजह है कि उसके बाद जब एक और वैसा ही प्रस्ताव आया तो मैंने साफ मना कर दिया। मैं इस तरह के किसी आयोजन में अपनी रचनात्मक भागीदारी स्वीकार नहीं कर सकता।'







आज कला भी एक फैशन बन गयी है और फैशन डिजाइनर कला के खरीदार बन गये हैं, क्या इससे कला की गंभीरता को किसी तरह का नुकसान हो रहा है, यह पूछने पर उन्होंने कहा, "पेंटिंग को कौन खरीदता है, इससे एक पेंटर के रूप में मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। अब तो पेंटिंग खरीदना निवेश है इसलिए लोग उसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं। और इसीलिए आज समाज के एक वर्ग में पेंटिंग खरीदना फैशन बन गया है। लोग केवल नाम देखकर पेंटिंग खरीदते हैं, इससे भले ही कला को बहुत लाभ नहीं हो रहा हो परंतु कुल मिलाकर देखें तो इससे कोई नुकसान नहीं हो रहा। हां, कला के जानकार संग्राहक यदि पेंटिंग खरीदते हैं तो उससे कला और कलाकार दोनों को अतिरिक्त लाभ यह होता है कि इस तरह उनका काम भविष्य की धरोहर भी बन जाता है, वह केवल बहुमूल्य निवेश की सामग्री नहीं रह जाता। पर एक कलाकार इस स्थिति में नहीं होता कि वह खरीदार का चुनाव कर सके। उसके तो पेंटिंग बेचना है, फिर चाहे जो खरीदे। वैसे भी पेंटिंग खरीदने के पीछे चाहे निवेश की भावना हो या संग्रह करने की, जो भी खरीदार होता है वह कला खरीदने आता है, यह महत्वपूर्ण है।'

कला बाजार की बढ़त को बावा एक पेंटर के रूप में उतना ही महत्व देते थे जितना उसका मौद्रिक लाभ है। उनका कहना भी था कि कलाकार को भी पैसा मिलना चाहिए। वे यह भी मानते थे कि कलाकार को अपने काम पर ध्यान देना चाहिए, उसे इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि उसका काम कौन खरीदता है या खरीदता भी है या नहीं। यदि उसके काम में दम होगा तो लोग देर-सवेर उसका काम खरीदेंगे ही।

मध्य प्रदेश और इंदौर के साथ अपने लगाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इंदौर शहर मुझे क्यों पसंद है मैं इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। जब मैं युवा था तब इंदौर कई बार गया। मैं राजस्थान से इंदौर जाता था और वहां से साइकिल से कई बार मांडू गया हूं। वहां की हरियाली, महल, सब बहुत आकर्षित करते थे। विशेषरूप से बरसात के मौसम में या उसके बाद वहां का सौंदर्य देखते ही बनता था। मध्य प्रदेश से वैसे भी भारत भवन की जिम्मेदारी के कारण लगाव लगातार बना रहा है। 

मनजीत बावा एक बड़े कलाकार तो थे ही, उतने ही बड़े व्यक्तित्व के मालिक भी थे। भोपाल के युवा कलाकारों की दिल्ली में प्रदर्शनी के लिए गैलरी का किराया देना हो या उनके साथ संवाद कर उनकी शंकाओं का समाधान करना हो, वे कभी पीछे नहीं रहते थे। गैलरियों में अक्सर उन्हें युवा कलाकारों से बतियाते देखा जा सकता था। उनका कहना था कि नये कलाकारों से मिलकर, उनका काम देखकर उन्हें ऊर्जा मिलती है। उनका यह भी मानना था कि वरिष्ठ कलाकार होने के नाते यह उनका दायित्व भी है कि युवा कलाकारों को प्रोत्साहित करें। अक्सर अपनी प्रदर्शनी के दौरान वे युवा कलाकारों को कैटलॉग पर ड्राइंग बनाकर देते रहे थे, लोग उनकी इस आदत का बेजा लाभ भी उठाते रहे , परंतु उन्होंने अपना वह स्वभाव बदला नहीं। उनके असंख्य ड्राइंग इसी तरह लोगों के पास हैं। एक तरह का सूफियाना प्रभाव उनके काम पर ही नहीं, उनके जीवन पर भी है, और इसीलिए उनसे किसी के लिए भी मिलना आसान था। उनसे मिलकर कभी लगा नहीं कि  किसी स्टार पेंटर से मिल रहे हूं। बड़े कलाकार शायद ऐसे ही होते हैं। 


समकालीन कला परिदृश्य के बारे में मनजीत बावा का कहना था कि आज कई पीढ़ियों के कलाकार एक साथ काम कर रहे हैं और सभी काफी अच्छा काम कर रहे हैं। विशेषरूप से युवा कलाकारों में काफी ऊर्जा है और वे अच्छे प्रयोग भी कर रहे हैं। हमारे समय में कला के खरीदार नहीं थे और कला के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रयोग करने की सुविधा भी नहीं थी। आज तो नये-नये माध्यम गये हैं। इंस्टालेशन के अलावा वीडियो और कंप्यूटर का भी कला में अच्छा इस्तेमाल हो रहा है। सब काम अच्छो हो यह कभी नहीं हुआ। हर समय में कुछ अच्छा काम हुआ है तो खराब काम भी हुआ है। पर हमें अच्छा काम ही देखना चाहिए क्योंकि वही आगे जाता है।  मनजीत बावा नहीं मानते थे कि कला बाजार के कारण कला का कोई नुकसान हो रहा है या होगा। इस बारे में वे कहते थे, पहले भी ऐसे कलाकार थेजो केवल बिकने के लिए काम करते थे परंतु इससे सृजनात्मक काम करने वालों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। जब तैयब मेहता, गणेश पाइन, गायतोंडे, अमिताभ जैसे कलाकारों का काम नहीं बिकता था या कम कीमत में बिकता था तब भी उन्होंने तो काम बंद किया और ही खुद को बदला। आज इनका काम बिक रहा तब भी उन्होंने खुद को बदला नहीं है। अलबत्ता अब पैसा जाने से कलाकारों को काम करने की नयी ताकत मिल गयी है। पर बहुत से कलाकार आज बाजार को ध्यान में रखकर पेंटिंग कर रहे हैं, यह कहने पर वे कहते थे, "उन्हें जो करना है करें, हमें जो करना है वही करेंगे।

3 comments:

  1. ब्लोग बहुत ही अच्छा लगा । मनजीत बावा और अर्पिताजी जैसे दिग्गज कलाकारो की कलायात्रा का परिचय पाना बहुत बडी बात है । हिन्दी भाषा मे शायद ही ऐसा कोई कला-मंच होगा । बहुत बहुत धन्यवाद वेद प्रकाशजी.....नमस्कार...आभार ।

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  2. अत्यंत रोचक तथा भावभीनी अभिव्यक्ति के लिए आपका बहुत धन्यवाद ,शब्दों को पढ़के सम्मुख दृश्य का अनुभव हो रहा है और मंजीत बावा जी को मेरा प्रणाम कला के इस सागर में मैं मात्र एक बूंद हूं,अभी आपकी कला व जीवन प्रेरणा दायक है। __निखिलेश प्रजापति २०१९

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  3. बहुत कुछ जानकारी मिली.

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