Friday 10 October 2014

Rameswar Singh: a true indian painter/ रामेश्वर सिंह


रामेश्वर सिंह
05.02.1948- 09.10.2014रामेश्वर सिंह नहीं रहे। काफी समय से उनसे मुलाकात नहीं हो पायी थी। दिल्ली में रहते उन्हें काफी समय हो गया था पर उनसे मुलाकात अक्सर किसी प्रदर्शनी के दौरान ही होती थी। मुझे याद है कि एक बार काफी साल पहले, जब वे राजस्थान में ही रहते थे तब अपनी प्रदर्शनी में उन्होंने मुझे आमंत्रित किया था। उस समय उनके काम को लेकर बातचीत हुई थी। उनका काम पहली ही नजर में लोगों को बांध लेता है। अपने रंगों, आकारों और राजस्थानी लोक कलाओं के प्रभाव से उन्होंने अपनी अलग पहचान बनायी थी। एक ऐसे समय में जब भारतीय कलाकारों पर पश्चिमी कला का प्रभाव बढ रहा था, उन्होंने अपनी जडों के साथ जुडे रहकर ही अपनी कला को सींचा। ऐसा नहीं था कि वे अन्य कलाकारों की तरह अमूर्त चित्रों को नहीं रच सकते थे या उनमें कला के समकालीन चलन को पकडने की क्षमता नहीं थी, दरअसल वे मानते थे कि एक भारतीय कलाकार होने के नाते उनका काम भी भारतीय होना चाहिए। कुछ लोग उनके इस विचार से हो सकता है सहमत ना हो, पर किसी की सहमति या असहमति की उन्होंने कभी परवाह नहीं की।


अपने चित्रों में उन्होंने एक तरफ राजस्थानी लिपि का इस्तेमाल किया तो दूसरी तरफ लोक कलाओं की छवियों का। उनका मूल आकार समकालीन रहा जिसमें वे राजस्थानी कलाओं को जोड देते थे। इस तरह से वे आधुनिकता और पारम्परिक संस्कारों के बीच एक पुल बनाते रहे। एक आनन्द भाव उनकी कला में रहा और एक तरह की कथात्मकता भी। अक्सर मानवीय रिश्तों के साथ ही वे मानव के पशु-पक्षियों से रिश्ते को भी रचते रहे। उनके काम में जो कल्पनात्मकता है वही उसे एक कहानी में बदल देती है। चित्रकला में कहानी हो यह जरूरी नहीं है पर उनका काम इसके बिना अधूरा रहता। पर इतने पर ही बात खत्म नहीं हो जाती, उनके चित्रों में जो कथात्मकता है, वह इकहरी नहीं है। उनमें दर्शकों के लिये कथा के नये सूत्र तलाशने और एक नहीं कहानी गढने की पर्याप्त संभावनाएं रहती हैं।

वेद प्रकाश भारद्वाज

1 comment:

  1. अत्यंत उत्कृस्ट कलाकार ।

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