कला का होना
कला अब होने में नहीं है बल्कि उसे कला प्रमाणित करने की सफलता में है। और यह सफलता अब रचना पर नहीं अन्य दूसरी बातों पर निर्भर होती है। अवधारणात्मक कला रचना के वस्तु-तत्व में नहीं विचार में होती है। एक कलाकार अपने विचार को किस तरह और किस रूप में प्रस्तुत कर रहा है, और वह रूप क्या किसी तरह का सौंदर्यबोध रखता है, अब इसका कोई अर्थ नहीं रह गया है। कला उस विचार में है, अवधारणा में है जो कलाकार के मन व मस्तिष्क में है। यानी कला अब एक भौतिक तत्व की जगह वायवीय हो गई है। हालांकि आज भी कैनवास, शिल्प आदि का महत्व समाप्त नहीं हुआ है पर कला में अन्य रूप और प्रदर्शनों का दस्तावेजीकरण अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है। इसे हम सुबोध गुप्ता, सुदर्शन पटनायक, रियाज कामू, जितिश कल्लात सहित तमाम कलाकारों के काम में देख सकते हैं।कला विमर्श एक मंच है कलाओं और विचारों का। इस मंच से हम हिन्दी और अंग्रेजी के साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं में भी सामग्री देने का प्रयास करेंगे। सम्पादक : वेद प्रकाश भारद्वाज Kala Vimarsha is a platform for art and thought. we try to explore it in different Indian languages. All artists and writers are invited to share informations and thoughts. please mail all material text and images. my email ID is bhardwajvedprakash@gmail.com Editor : Ved Prakash Bhardwaj