Wednesday 15 May 2019

विकास की बहार है


वेद प्रकाश भारद्वाज

यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ है विकास की बहार, पर तुझको क्यों दिखाई देता नहीं मेरे यार। रीतिकाल होता तो कोई कवि कहता कोठिन में बंगलन में, दफ्तरन में नेतन में बगरो बिकास है। पर यह रीतिकाल नहीं है, वीरगाथा काल है। वीरों का हो कैसा बसंत नहीं, वीरों का हो कैसा चुनाव का वक्त है। यकीन न हो तो बंगाल में देख लीजिए, साक्षात दंगल है। और ज्यादा देखना हो तो सोशल मीडिया पर टहल आइये, तबीयत झक्क न हो जाए तो कहियेगा। एक से बढ़कर एक शब्द-वीर तीर चला रहे हैं। चुनाव आयोग का डर न होता तो उसे ही असली अखाड़ा बना देते। फिर भी ऐसे वीरों की कमी नहीं जिन्होंने अपने-अपने पक्ष की जीत का ऐलान शुरू कर दिया है, भले ही गिनती बाकी है। मुगालता पालना सबका लोकतांत्रिक अधिकार है।
चुनाव आयोग की सख्ती के चलते चुनाव प्रचार पर अब प्रत्याशियों द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष खर्च में कमी आयी है। पहले की तरह दिन-रात कान फोडू आवाजों से तो राहत मिल ही गयी है। चुनाव के दौरान ध्वनि प्रदूषण कम हो गया है परंतु इस बार बौद्धिक प्रदूषण बढ़ गया। जब से सोशल मीडिया आया है हर कोई पत्रकार बन गया है और विश्लेषक भी। जिसे देखो वही या तो खुद लोगों को यह समझाने पर आमादा है कि कौन सही है और कौन गलत या फिर दूसरों के समझाये में अपनी समझदानी लेकर घुस गया। इसके या उसके पक्ष या विपक्ष में जैसी लतरानी सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही है उसके बारे में कुछ भी कहना दीपक को सूरज दिखाने जैसा होगा। पुराना समय होता तो किसी प्रत्याशी के कार्यालय में बैठे समोसा-शरबत पर देश का भविष्य तय कर रहे होते। पर इस बार तो कार्यालय देखने को भी नहीं मिल रहे।
इधर चुनाव आयोग का डंडा चल रहा है और खूब चल रहा है। मतदाताओं की सेवा के लिए लाया गया कोई 3400 करोड़ का माल पकड़ा गया। जो नहीं पकड़ा गया उसका कोई हिसाब नहीं है। वैसे भी कहते हैं कि जो पकड़ा गया वही चोर है। लालू पकड़े गये तो जेल में हैं वर्ना बोफोर्स से लेकर राफेल तक, 2जी से लेकर एजी ओजी सुनोजी तक सब मजे में हैं। लोग फैनी से खैनी तक पता नहीं किस-किस को कोस रहे हैं।
कोई शेयर बाजार की चाल को लेकर परेशान है। विकास की दर कम होने का अलग रोना है। इस देश की यही खासियत है। लोग हमेशा रोते रहते हैं। उन्हें विकास वहाँ नहीं दिखता जहाँ वह हो रहा होता है। इस बार चुनाव लड़ रहे हमारे सांसदों की संपत्ति 41 प्रतिशत बढ़ गयी। क्या उनका विकास देश का विकास नहीं है? माना कि देश का बजट गड़बड़ा रहा है, महंगाई बढ़ गयी है पर विकास तो हुआ ना? अब जहाँ वह हो सकता था वहाँ हुआ। सीलमपुर की झुग्गी भला वसंतकुंज की कोठी कैसे बन सकती है? सोचने वाली बात है। पर नहीं, हम नहीं सोचेंगे। फेसबुकियाई लोगों को तो बस नेताओं के बयान ही दिख रहे हैं। भाजपा के 361 और कांग्रेस के 348 करोड़पति प्रत्याशी नहीं दिख रहे। देश का चुनाव अब करोड़पतियों का चुनाव होता जा रहा है। क्या यह विकास नहीं है? कई बार मुझे समझ में नहीं आता कि लोग आखिर चाहते क्या हैं? क्या वो चाहते हैं कि आज भी प्रत्याशी 1952 की तरह साइकिल पर घूमकर प्रचार करें?
देश इतना विकास कर चुका है तो क्या नेता नहीं करेंगे? अंत में एक शेर अर्ज़ किया है
हर तरफ विकास की बहार है अब दोस्तों
राजनीति तो एक व्यापार है अब दोस्तों
15-5-2019

Saturday 11 May 2019

बात बतंगड़


बात बतंगड़ / डॉ. वेद प्रकाश भारद्वाज

1.
राजनीति का मी टू काल
चुनाव से पहले कितने ही मिट्ठुओं की नींद हराम करने वाला मी टू अब राजनीति में भी घुस आया है। इधर शॉट गन को अचानक याद आया कि उनके साथ ठीक नहीं हो रहा था तो वो कांग्रेस में चले गए, वहाँ उनके साथ सब ठीक होगा। कीर्ति आज़ाद तो पहले ही भाजपा की बरसों की यारी को सी टू कहते हुए अपने पिता के राजनीतिक घर में प्रवेश कर गए हैं। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि हमारे सम्पर्क में टीएमसी के 40 विधायक हैं। उनकी घोषणा सुनकर दीदी मी टू की शिकायत करतीं इससे पहले दिल्ली में आप का एक विधायक मी टू मी टू करते हुए भाजपा में शामिल हो गया। पहले भाजपा सर्जिकल स्ट्राइक सर्जिकल स्ट्राइक गीत गा रही थी। कांग्रेस पीछे कैसे रहती। वह भी गाने लगी, मी टू, कि हमने भी की थी सर्जिकल स्ट्राइक। कांग्रेसी कब भाजपाई हो जाए और भाजपाई कांग्रेसी या सपाई, कुछ कह नहीं सकते। सब मी टू गा रहे हैं। इधर जनता बची है। चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि उसने क्या कहा, मी टू या सी टू।
5-5-19

2.
राष्ट्रीय झूठ प्रतियोगिता

साधो! इन दिनों हर तरफ झूठ का कारोबार फैला है। लोकल से लेकर नेशनल लेवल तक जिसे भी मौका मिल रहा है, झूठ बोल रहा है। साधो! यह चुनाव का मौसम है। इस मौसम में झूठ का कारोबार खूब फैलता है। ऐसा लगता है जैसे राष्ट्रीय झूठ प्रतियोगिता चल रही है। भूतपूर्व से लेकर भावी भारत भाग्य विधाता तक इस प्रतियोगिता में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। कुछ भाग्य विधाता बनने की कोशिश में इस प्रतियोगिता में शामिल हैं। जिसको जितना बड़ा मौका मिल रहा है उतना ही बड़ा झूठ बोल रहा है। गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं। झूठ को कुछ तो आधार चाहिए। नया नहीं तो पुराना आधार भी चलेगा। सरकार अपनी सरकार बचाने को झूठ बोलती है तो विप़क्ष सरकार बनाने को झूठ बोल रहा है। और झूठ भी कैसा, जिसका कोई सिर-पैर न हो। साधो! झूठ के पाँव नहीं होते इसलिए नेता उसमें पहिये लगा रहे हैं। इस राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। साधो! जनता कभी एक की तरफ देखती है कभी दूसरे की तरफ। किसके झूठ को सच माने और किसके सच को झूठ- कुछ समझ नहीं पा रही है। इस राष्ट्रीय झूठ प्रतियोगिता में सच तो खोटा सिक्का है। भेड़िया आया - भेड़िया आया की तर्ज़ पर इतना झूठ बोला जा रहा है कि कभी गलती से कोई सच बोल भी दे तो लगता है झूठ ही बोल रहा है। जनता की इस प्रतियोगिता में भागीदारी नहीं होती पर पैवेलियन में बैठा दर्शक हाथों को उठाकऱ घुमाकर चौका-झक्का मारने का पुलाव तो पका ही लेता है। इस प्रतियोगिता का दर्शक मतदाता भी कुछ ऐसा ही कर रहा है। वह सभी नेताओं से कहता है कि आपको ही वोट देंगे। नेता जानते हैं कि मतदाता झूठ बोल रहा है। मतदाता मन ही मन कहता है- आप भी तो झूठों के सरदार हैं। सच्चाई का ताबीज़ सबने गले में पहन रखा है पर गला है कि झूठ के अलावा कुछ उगलता ही नहीं है। साधो! सब जानते हैं, हमाम में सब नंगे हैं पर कोई इस सच्चाई को स्वीकारना नहीं चाहता। लखनवी अंदाज़ में पहले आप - पहले आप की तर्ज़ पर पहले तेरा पाप- तेरा पाप का राग सब अलाप रहे हैं। साधो! इस प्रतियोगिता में कौन जीतेगा पता नहीं पर जिसे देखो वही जीत के गर्व से तना हुआ है। छोटे नवाब इस प्रतियोगिता में सबसे आगे हैं। गरीबी हटाओ के पुश्तैनी झूठ को दोहराते हुए उन्होंने सबको पीछे छोड़ दिया है। पर उनसे मुक़ाबिल लोग भी कम नहीं हैं। साधो! ऐसे में बस यही कहने का मन करता है कि -हम झूठन के सबसे प्यारा झूठ हमारा।
6-5-19
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3.
माया मिले न राम

शास्त्रों में लिखा है, बचपन से सुनते भी रहे हैं कि व्यक्ति को मोह माया और ममता से दूर रहना चाहिए। इतिहास भी यही बताता है कि ज्यादातर लड़ाइयाँ मोह माया के कारण ही हुईं। महाभारत भी इसी का नतीजा था। गांधारी की ममता और धृतराष्ट्र का मोह न होता तो महाभारत भी न होता। तब से आज तक लोग माया और ममता के फेर में तीतर से बटेर होते रहे हैं। फिर कहा भी जाता है कि माया मिली न राम। आजकल जनता की ऐसी ही हालत है। कांग्रेसी आजकल लोगों को समझा रहे हैं कि माया और ममता के चक्कर में मत पड़ो। यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री के कपड़े सिलवा लिए हैं। यक़ीन न हो तो मोदीजी से पूछ लो, रसीद उनके हाथ लग चुकी है। उन्होंने खुल्लमखुल्ला कहा है कि विपक्ष के पास सरकार बनाने लायक उम्मीदवार हैं नहीं और प्रधानमंत्री के कपड़े सिलवा लिए हैं। अब यह तो भविष्य ही बताएगा कि कौन प्रधानमंत्री के कपड़े पहनेगा और कौन नहीं पर इतना तय है, मनुष्य के लिए माया और ममता, दोनों से बचना आसान नहीं है। खुद माया और ममता का मोह छूटना मुश्किल है। भतीजे की शह मिल गई है तो अब बुवाजी ताजपोशी का ख़्वाब देखने लगी हैं। अम्बेडकर नगर से कभी भी दिल्ली फ़तह करने की बात कह रही हैं। अब नेताओं के लिए तो सबकुछ मुमकिन है। वैसे, जनता की स्थिति तो हमेशा कुछ ऐसी होती है कि
चाहे जितनी कोशिश कर, करले कितने ही काम
जनता की किस्मत ऐसी कि माया मिले न राम।
7-5-19
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4.
फिसल गयी तो क्या करें!

साधो! फिसलना भारत का राष्ट्रीय चरित्र है जो राष्ट्रीय उत्सव चुनाव के समय और निखर कर सामने आता है। यह चुनाव की बेला है, वादों और आश्वासनों का रेला है, मतदाताओं का ठेलमठेला है। चारों तरफ हड़बड़ी मची है। मतदाताओं को पकड़ने की जल्दबाजी में कुछ का कुछ हो जा रहा है। ऐसे में साधो! किसी की जुबान फिसल जाए तो क्या बड़ी बात है। आखिर जुबान ही तो है, बिना हड्डी की है। अब ममताजी हैं सबकी दीदी हैं और वह भी बड़की वाली, उन्हें कोई भी कुछ भी कहने से कैसे रोक सकता है। चाहे जब बरस पड़ती हैं। मोदीजी के पीछे तो जैसे राशन-पानी लेकर पड़ी हैं। मोदी का नाम सुनकर वह भड़क जाती हैं। उन्होंने कहा है कि हम दंगा और धर्म के नाम पर वोट नहीं मानते। तो क्या भजन के नाम पर माँगती हैं! उनके इस भोलेपन पर एक शेर कहने को मन करता है
अपने घर में वो रखते कोई दरपन नहीं
कत्ल करते हैं और माथे पर शिकन नहीं।
बड़ी दी तो बड़ी दी- छोटी दी सुभानअल्लाह। उन्हें मोदी में दुर्योधन नज़र आ रहा है। वैसे तो कहते हैं कि जाकि रही भावना जैसी दिखती है हर सूरत वैसी। पर इसका क्या किया जा सकता है। सिब्बल साहब की जुबान भी फिसली तो बोल गये कि मोदी और भाजपा राम मंदिर निर्माण के प्रति गंभीर नहीं हैं। तो क्या कांग्रेस गंभीर है, इधर बहनजी की जुबान फिसली तो भतीजाजी कैसे पीछे रहें। और यह सब फिसल रहे हैं तो फिर हम ही क्यों बचे रहें, साधो! स्थिति यह हो गयी है कि जिसे देखो वहीं मौका पाते ही जुबान को फिसला दे रहा है। बाद में ज्यादा से ज्यादा माफी मांगनी पड़ेगी। बचपन से सॉरी बोलने का अभ्यास है, वह किस दिन काम आएगा!
8-5-2019

5.
और चाबी चोरी हो जाए

चुनावी जुमलाबंदी के इस दौर की बात ही कुछ और है। जैसे-जैसे परीक्षा की अंतिम घड़ी निकट आती जा रही है सांसों का तूफान और तेज हो रहा है। दिमाग के घोड़े रोके नहीं रूक रहे। जुबान की मझली कब किधर फिसल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर कोई खुद को पास और दूसरों को फेल बता रहा है। कोई कुछ भी कहने-बताने को स्वतंत्र है। बुवाजी ने दिल्ली दरबार का ख्वाब देखा तो भतीजे जी तत्काल तश्तरी में ताज लेकर आगे आ गये। उधर दक्षिण के सूरमा अलग राग अलापने लगे हैं, सत्ता की चाबी हमारे पास है। बोल तो दिया पर अब डरे-डरे हैं। कहीं ऐसा न हो कि चाबी चोरी हो जाए। इधर राहुल भैया चंद्रा चाचा से मिटिंग कर गुपचुप कुछ फिक्स कर आये हैं। क्या फिक्स किया है अभी किसी को पता नहीं। चंद्रशेखर जी से यह सब नहीं देखा गया तो बोल ही पड़े की सत्ता की चाबी दक्षिण के हाथ में है। अब सबसे चाबी छुपाते घूम रहे हैं। अब लग रहा है गलत समय पर बोल पड़े। मोदी जी ने अपने पत्ते अभी तक छुपा कर रखे हैं। कभी-कभी जोश में आकर इशारा कर देते हैं। बंगाल में दीदी का कुनबा तोड़ने का संकेत दे ही चुके हैं। दिल्ली में आप में तोड़-फोड़ मच ही चुकी है। रख लो अभी चाबी। हम ताला ही बदल देंगे। 
9-5-19

6.
आओ हिल-मिल खेलें

साधो! चुनाव का अंतिम दौर चल रहा है। सारे योद्धा अपने सारे तीर-कमान लेकर एक-दूसरे पर टूट पड़े हैं। दिन भर वोट के इस महाभारत के बाद भी योद्धाओं को चैन नहीं मिलता। द्वापर युग होता तो शाम को सब अपने-अपने शिविर में आराम करते। पर इस महाभारत के योद्धाओं को आराम कहाँ। यह तो कभी न रूकने वाला युद्ध है। वैसे भी अमेरिका की मेहरबानी से मुक्त बाजार की बूटी ने हमें चौबिस घंटे सातों दिन की घुट्टी पिला दी है। अब हमारा देश भी कभी सोता नहीं है। फिर हमारे नेता ही भला कैसे सो सकते हैं। उन्हें तो इन दिनों वैसे भी फुरसत नहीं है। अभी तो बहुत काम बाकी हैं। महाभारत की तरह इसमें भी तय है कि जीतने पर राजा कौन बनेगा और मंत्री कौन, बस महाभारत की तरह कौन जीतेगा यह तय नहीं है। इसलिए मंत्रणाएँ हो रही हैं। जीत के लिए सैटिंग हो रही है। अब महाभारत दो पक्षों के बीच तो है नहीं। यह महाभारत तो बहु-पक्षीय है। हर पक्ष की अपनी सल्तनत है। सौदेबाजी शुरू हो गयी है। जिनके बीच कभी जूतियों में दाल बंटतीथी वह मिलकर सत्ता की खिंचड़ी पकाने की योजना पर काम कर रहे हैं। खिंचड़ी भले ही कच्ची रह जाए या बीच में ही हांड़ी फूटने का डर हो पर एक बार हिल-मिल कर हांड़ी चढ़ा तो लें। यह तो खेल है, मिलकर खेलेंगे तो जीतने की संभावना रहेगा। इसलिए साधो! आज सभी खिलाड़ी दूसरे को अनाड़ी मानते हुए आओ हिल-मिल खेंलेंयोजना में आमंत्रित कर रहा है। लोग आ भी रहे हैं। कब तक हिल-मिल रहेंगे यह बाद में सोचेंगे। अभी तो जीतना है। असली खेल तो खेल खत्म होने के बाद होना है। उसमें यदि सही दाँव नहीं चला तो आखिरी गेंद पर रन आउट होने का खतरा है। इसलिए पहले से तय कर लेना जरूरी है। सारे दल संभावनाओं के द्वार खोलकर बैठे हैं।
10-5-2019
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Thursday 9 May 2019

और चाबी चोरी हो जाए


बात बतंगड़

वेद प्रकाश भारद्वाज

चुनावी जुमलाबंदी के इस दौर की बात ही कुछ और है। जैसे-जैसे परीक्षा की अंतिम घड़ी निकट आती जा रही है सांसों का तूफान और तेज हो रहा है। दिमाग के घोड़े रोके नहीं रूक रहे। जुबान की मझली कब किधर फिसल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। हर कोई खुद को पास और दूसरों को फेल बता रहा है। कोई कुछ भी कहने-बताने को स्वतंत्र है। बुवाजी ने दिल्ली दरबार का ख्वाब देखा तो भतीजे जी तत्काल तश्तरी में ताज लेकर आगे आ गये। उधर दक्षिण के सूरमा अलग राग अलापने लगे हैं, सत्ता की चाबी हमारे पास है। बोल तो दिया पर अब डरे-डरे हैं। कहीं ऐसा न हो कि चाबी चोरी हो जाए। इधर राहुल भैया चंद्रा चाचा से मिटिंग कर गुपचुप कुछ फिक्स कर आये हैं। क्या फिक्स किया है अभी किसी को पता नहीं।  चंद्रशेखर जी से यह सब नहीं देखा गया तो बोल ही पड़े की सत्ता की चाबी दक्षिण के हाथ में है। अब सबसे चाबी छुपाते घूम रहे हैं। अब लग रहा है गलत समय पर बोल पड़े। मोदी जी ने अपने पत्ते अभी तक छुपा कर रखे हैं। कभी-कभी जोश में आकर इशारा कर देते हैं। बंगाल में दीदी का कुनबा तोड़ने का संकेत दे ही चुके हैं। दिल्ली में आप में तोड़-फोड़ मच ही चुकी है। रख लो अभी चाबी। हम ताला ही बदल देंगे। 
9-5-2019