वेद प्रकाश भारद्वाज
यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ
है विकास की बहार, पर तुझको क्यों
दिखाई देता नहीं मेरे यार। रीतिकाल
होता तो कोई कवि कहता ‘कोठिन में बंगलन में, दफ्तरन
में नेतन में बगरो बिकास है।‘ पर
यह रीतिकाल नहीं है, वीरगाथा काल है।
वीरों का हो कैसा बसंत नहीं, वीरों
का हो कैसा चुनाव का वक्त है। यकीन न हो तो बंगाल में देख लीजिए, साक्षात
दंगल है। और ज्यादा देखना हो तो सोशल मीडिया पर टहल आइये, तबीयत
झक्क न हो जाए तो कहियेगा। एक से बढ़कर एक शब्द-वीर तीर चला रहे हैं। चुनाव आयोग का
डर न होता तो उसे ही असली अखाड़ा बना देते। फिर भी ऐसे वीरों की कमी नहीं जिन्होंने
अपने-अपने पक्ष की जीत का ऐलान शुरू कर दिया है, भले
ही गिनती बाकी है। मुगालता पालना सबका लोकतांत्रिक अधिकार है।
चुनाव आयोग की सख्ती के चलते चुनाव प्रचार
पर अब प्रत्याशियों द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष खर्च में कमी आयी है। पहले की
तरह दिन-रात कान फोडू आवाजों से तो राहत मिल ही गयी है। चुनाव के दौरान ध्वनि
प्रदूषण कम हो गया है परंतु इस बार बौद्धिक प्रदूषण बढ़ गया। जब से सोशल मीडिया आया
है हर कोई पत्रकार बन गया है और विश्लेषक भी। जिसे देखो वही या तो खुद लोगों को यह
समझाने पर आमादा है कि कौन सही है और कौन गलत या फिर दूसरों के समझाये में अपनी
समझदानी लेकर घुस गया। इसके या उसके पक्ष या विपक्ष में जैसी लतरानी सोशल मीडिया
पर देखने को मिल रही है उसके बारे में कुछ भी कहना दीपक को सूरज दिखाने जैसा होगा।
पुराना समय होता तो किसी प्रत्याशी के कार्यालय में बैठे समोसा-शरबत पर देश का
भविष्य तय कर रहे होते। पर इस बार तो कार्यालय देखने को भी नहीं मिल रहे।
इधर चुनाव आयोग का डंडा चल रहा है और खूब
चल रहा है। मतदाताओं की सेवा के लिए लाया गया कोई 3400 करोड़ का माल पकड़ा गया। जो
नहीं पकड़ा गया उसका कोई हिसाब नहीं है। वैसे भी कहते हैं कि जो पकड़ा गया वही चोर
है। लालू पकड़े गये तो जेल में हैं वर्ना बोफोर्स से लेकर राफेल तक, 2जी
से लेकर एजी ओजी सुनोजी तक सब मजे में हैं। लोग फैनी से खैनी तक पता नहीं किस-किस
को कोस रहे हैं।
कोई शेयर बाजार की चाल को लेकर परेशान है।
विकास की दर कम होने का अलग रोना है। इस देश की यही खासियत है। लोग हमेशा रोते
रहते हैं। उन्हें विकास वहाँ नहीं दिखता जहाँ वह हो रहा होता है। इस बार चुनाव लड़
रहे हमारे सांसदों की संपत्ति 41 प्रतिशत बढ़ गयी। क्या उनका विकास देश का विकास
नहीं है? माना कि देश का बजट
गड़बड़ा रहा है, महंगाई बढ़ गयी है पर
विकास तो हुआ ना? अब
जहाँ वह हो सकता था वहाँ हुआ। सीलमपुर की झुग्गी भला वसंतकुंज की कोठी कैसे बन
सकती है? सोचने वाली बात है।
पर नहीं, हम नहीं सोचेंगे।
फेसबुकियाई लोगों को तो बस नेताओं के बयान ही दिख रहे हैं। भाजपा के 361 और
कांग्रेस के 348 करोड़पति प्रत्याशी नहीं दिख रहे। देश का चुनाव अब करोड़पतियों का
चुनाव होता जा रहा है। क्या यह विकास नहीं
है? कई बार मुझे समझ में
नहीं आता कि लोग आखिर चाहते क्या हैं? क्या वो चाहते हैं
कि आज भी प्रत्याशी 1952 की तरह साइकिल पर घूमकर प्रचार करें?
देश इतना विकास कर चुका है तो क्या नेता
नहीं करेंगे? अंत में एक शेर
अर्ज़ किया है
हर तरफ विकास की बहार है अब दोस्तों
राजनीति तो एक व्यापार है अब दोस्तों
15-5-2019
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