Tuesday 17 November 2020

अंजुम सिंह की कला

 

अंजुम सिंह की कला





(यह लेख 2005 में युवा कलाकरों पर लिखे एक लंबे लेख का हिस्सा है जिसमें मामूली परिवर्तन के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं। -वेद प्रकाश भारद्वाज)

समकालीन दुश्चिंताओं की अभिव्यक्ति है अंजुम सिंह की कला जिसमें पानी की काली बोतलों से लेकर रोजमर्रा काम में आने वाली चीजें और उनके अक्स उनके काम को नये अर्थ देते हैं। शांति निकेतन में पेंटिंग की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने कोनकर्न स्कूल ऑफ आर्ट वाशिंगटन, अमेरिका में कला की शिक्षा प्राप्त की। अमेरिका निवास ने उन्हें कला को जीवन के और निकट ले जाने का संस्कार दिया। उनकी कृति "बंपर टू बंपर' जहां महानगरीय जीवन की एक प्रमुख समस्या यातायात जाम की अभिव्यक्ति है तो "वार्मी वाटर' जल प्रदूषण एवं संकट को नये अर्थ प्रदान करती है। "स्पिट' और उसके बाद "स्पिल' (विभाजन/विस्तार) समकालीन जीवन में सामाजिक एवं मानसिक संकटों को व्यक्त करती है। "कोला बूम' और "पेस्टल ऑफ प्लास्टिक' (इंस्टालेशनभी आधुनिक संकटों की अभिव्यक्तियां हैं।



अंजुम सिंह के काम को हम जीवन की प्रतिक्रिया कह सकते हैं। दैनदिनी अनुभवों को वे अपनी पेंटिंग और इंस्टालेशन का आधार बनाती हैं। कुछ लोगों को अंजुम का काम समझने में दिक्कत होती है फिर भी वे उसके दृश्य-प्रभाव को ग्रहण करते हैं। अंजुम के काम में जो सामाजिक सरोकार हैं, वे भी लोगों को आकर्षित करते हैं। कम उम्र में ही अंजुम ने कला को सामाजिक चेतना से जोड़ना शुरु कर दिया था और इसीलिए उनसे और भी अच्छे और सच्चे काम की आशा की जाती रही। यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने इस आशा को भरसक पूरा भी किया। हालांकि कई बार उनका काम अमूर्तन की दिशा में अधिक बढ़ता लगता था, विशेषरूप से उनकी प्रदर्शनी "स्पिल' के काम में, पर वे अपनी बात को देखने वालों तक पहुंचाने में सफल रहती हैं। किसी तरह के सच का बयान का उनका दावा नहीं था वे कहती थीं, "सत्य कुछ नहीं है, जो कुछ है वह केवल अपनी-अपनी व्याख्या है।



अंजुम बहुत अधिक काम करने में या बहुत प्रदर्शनियां करने में यकीन नहीं रखतीं थीं वे कहती थीं, मेरा यकीन अधिक काम करने या अधिक दिखने में नहीं है। जैसे-जैसे आप ड़े और परिपक्व होते जाते हैं चीजों के प्रति आपका दृष्टिकोण भी बदलने लगता है। जैसे आज मेरे लिए सृजनात्मक संतोष अधिक महत्त्वपूर्ण है बजाय अधिक काम करने के। इसका मतलब यह नहीं कि मेरे लिए प्रदर्शनियां कोई महत्व नहीं रखती हैं, दरअसल मैं जब तक काम को प्रदर्शित नहीं करती जब तक कि मुझे उससे संतुष्टि हो जाए।’

No comments:

Post a Comment