Monday, 12 August 2024

रंगों रेखाओं का संगीतः उमेश कुमार सक्सेना की कला प्रदर्शनी

उमेश कुमार सक्सेना का कला संसार
ब्रश रंग को साथ लेकर अपनी यात्रा पर निकलता है और कितने ही ख़्वाब आकार लेने लगते हैं। और यदि रंग सिर्फ़ काला हो तो वह कविता में बदल जाता है। उमेश कुमार सक्सेना की पेंटिंग्स और ड्राइंग्स कविता की तरह हैं। इनमें पक्षी दिखाई देता है, हवा में उठा हाथ नजर आता है, दोनों गतिशील हैं। जीवन की गतिशीलता इनमें दिखाई देती है। कोई तीन दशक पहले उनकी कला से पहला परिचय हुआ था। वो पहला परिचय आज फिर से जैसे जिन्दा हो गया है। लखनऊ की कला स्रोत आर्ट गैलरी में 11अगस्त 2024 को जब उनकी एकल प्रदर्शनी ' म्यूजिक और कलर्स एन्ड लाइन्स ' शुरू हुई तो सामने व्यक्ति पुराना था पर कलाकार नया। म्यूजिक मैजिक होता है, उसमें एक चमत्कार होता है। उमेश जी की कला में संगीत की कोमलता और शांति भी है और जादुई आभास भी। उनके रंग और उन रंगों से बनते मूर्त या अमूर्त रूप किसी जादू से कम नहीं हैं। इस प्रदर्शनी में शामिल चित्रों को संगीत का जादू भी कला जा सकता है। रंग और ब्रश स्ट्रोक की न्यूनता, जो उमेश जी की पहचान थी वह तो इस प्रदर्शनी में उपस्थित थी ही, एक नई पहचान और सामने थी जो पहली पहचान से अधिक स्वतंत्रता और चेतन दिखाई दे रही थी। उमेश जी की चित्र रचना में अमूर्तन हमेशा एक पक्ष रहा है पर अमूर्तन सम्पूर्ण पक्ष हो जाएगा, इसकी कल्पना कभी की नहीं थी, पर अब यह हो चुका है।
रंगों की हल्की परतों के साथ भूदृश्य उनकी एक पहचान रहे हैं जिनमें अक्सर पर्वतीय शांति और गंभीरता केंद्र में रही है। कई बार वह ऐसे दृश्य रचते रहे हैं जो किसी एक अर्थ या छवि तक सीमित न रहकर अर्थ और छवियों कि श्रृंखला बन जाते हैं। ऐसे ही तेरह चित्रों की एक श्रृंखला इस प्रदर्शनी में भी है। नीले रंग की पृष्ठभूमि पर सफ़ेद रंग की कई पारदर्शी परतें मनुष्य, पशु, पक्षी और वनस्पतियों का ऐसा आभास रचती है जो दर्शकों को दृश्य से बांधती नहीं हैं बल्कि उसे दृश्य से मुक्त कर देती हैं। ऐसा लगता है जैसे आकाश में सफ़ेद बादलों के समूह अटखेलियाँ कर रहे हैं और नानाविध रूप में खुद को पहचान दे रहे हैं। प्रदर्शनी में आए दर्शक, जिनमें अनेक कलाकार थे, इन चित्रों को आपने अनुभव और संवेदना के अनुरूप कई नए अर्थ और संदर्भ के साथ देख रहे थे।
यही बात उनके नए अमूर्त चित्रों के बारे में कही जा सकती है जिसे लेकर दर्शक कलाकारों में गहरी उत्सुकता थी। गोल कैनवास पर पृथ्वी जैसी गोल संरचना में कहीं कहीं मानवीय चेहरे की उपस्थिति का आभास हो रहा थ पर उसके साथ जो ब्रश के चंचल गतिशील बोल्ड स्ट्रोक्स जो जाल बना रगे हैं वह देखने वालों को कई दिशाओं में ले जाते हैं। मूलतः ब्रह्माण्ड में होने वाली गतिविधियों, उसमें होने वाले परिवर्तनों को केंद्र में रखकर इन चित्रों की रचना की गई है। यह एक नए उमेश कुमार सक्सेना का उदय है जो किसी भी परिचित रूप या उसके आभास से मुक्त होने की राह पर है। ब्रह्माण्ड की ऊर्जा और गति को उन्होंने एक कलाकार के रूप में देखने - दिखाने की कोशिश की है। यहां उन्होंने ऐसी रंग योजना का अधिक प्रयोग किया है जिसमें खगोलीय घटनाओं की चमक के साथ ही उसकी रहस्यमय धूमिल छवि भी सामने आती है। रूप की गति और मुक्ति यहां अरुप में प्रत्यावर्तित हो गई है। और यही जीवन है, जीवन जो रूप में नहीं उसके होने में होता है, और जीवन का होना गति और मुक्ति की अनवरत प्रक्रिया है।
उनकी ड्राइंग्स की अलग से चर्चा करना जरूरी है। मैं एक तरह से पहली बार उनकी ड्राइंग्स से मिला। यह मिलना ही था, एक ऐसे व्यक्ति से मिलना जिससे कोई तीन दशक से मिलता रहा फिर भी वह मिलना अधूरा ही रहा। वैसे किसी कलाकार से मिलना हमेशा अधूरा ही रहता है क्योंकि वह कभी भी पूरी तरह खुल नहीं पाता है। उमेश जी के साथ भी इस बार कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ, जब उनकी ड्राइंग्स देखीं। रंगों के आभा मंडल से अलग काले रंग की अपनी दुनिया है जो किसी भी दूसरे रंग से अधिक संभावना रखता है। इसी काले रंग को लेकर उमेश जी एक या डॉ स्ट्रोक्स में ड्राइंग को रचते है। ज्यादातर पक्षी की आकृति उभरती है जो आपने पँख फैलाए उड़ती प्रतीत होती है। मुक्ति का, स्वतंत्रता की कामना यहां नए रूप में आभासित होती है। रूप के साथ बंधन को उमेश जी ने कभी स्वीकार किया था, यह तो नहीं कहा जा सकता पर उससे मुक्त होकर नए कलारूप में खुद को व्यक्त करना अवश्य नया लगता है। इस प्रदर्शनी में उनकी कुछ कैनवास पर की गई ड्राइंग्स प्रदर्शित हैं। पर मुझे उनकी कागज़ पर रची अनेक ड्राइंग्स को देखने का अनुभव मिला। -डॉ. वेद प्रकाश भारद्वाज

1 comment:

  1. अद्भुत क्षमता के साथ लेखक ने कला विमर्श किया है l

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