कला विमर्श एक मंच है कलाओं और विचारों का। इस मंच से हम हिन्दी और अंग्रेजी के साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं में भी सामग्री देने का प्रयास करेंगे। सम्पादक : वेद प्रकाश भारद्वाज Kala Vimarsha is a platform for art and thought. we try to explore it in different Indian languages. All artists and writers are invited to share informations and thoughts. please mail all material text and images. my email ID is bhardwajvedprakash@gmail.com Editor : Ved Prakash Bhardwaj
Thursday, 19 December 2024
कला में कबीरः डॉ. वेद प्रकाश भारद्वाज
भारतीय इतिहास का मध्यकाल जिन कुछ विशेष बातों के लिए जाना जाता है उनमें से एक भक्ति आंदोलन है। इसी भक्ति आंदोलन का एक पक्ष है हिंदी कविता का भक्तिकाल जो वास्तव में क्षेत्रीय भाषाओं की कविताओं का समय था। यही वह समय था जब साहित्य दरबारों से बाहर निकला, संस्कृत के एकाधिकार को उसने चुनौती दी और लोक मानस को दिशा देने का काम किया। तुलसीदास ने यदि रामकथाओं को सुनने - सुनाने के उच्च वर्ग के एकाधिकार को चुनौती दी तो कबीर ने धर्म और सामाजिक जीवन के विरोधाभासों को निशाना बनाया। यह आश्चर्य नहीं की कबीर, रैदास, रसखान रहीम जैसे कवियों ने स्थानीय भाषा के साथ ही जीवन के व्यावहारिक मूलभूत प्रश्नों को उठाया। इन सब में कबीर दास अधिक प्रभावी और लोकप्रिय हुए। उनका प्रभाव आज सैकड़ों साल बाद भी बना हुआ है और आज भी वह प्रासंगिक हैँ। कबीर अपने कथ्य में सरल भी हैं और विरल भी। कबीर की रचनाएं बहुआयामी यथार्थ को सामने लाती हैं। इसीलिए उनका दूसरी कलाओं में अनुवाद या अभिव्यक्ति सरल नहीं है। चित्रकला में कई कलाकारों ने कबीर को लेकर पहले भी काम किया है जिनमें अर्पणा कौर और गुलाम मोहम्मद शेख के नाम प्रमुखता से लिये जा सकते हैं। इन दिनों कबीर के दोहों और अन्य रचनाओं को केंद्र में रखकर कुछ कलाकारों की रचनाओं की एक प्रदर्शनी चल रही है। इस प्रदर्शनी की क्यूरेटर हैं वरिष्ठ कलाकार दुर्गा कैंथोला। इस प्रदर्शनी की पिछले कोई छह माह में हुई तैयारी का नतीजा 19 दिसंबर 2024 की शाम दिल्ली की अर्पणा आर्ट गैलरी में सामने आया। यह प्रदर्शनी 24 दिसंबर तक रहेगी।
कबीर में जो निर्भीकता है उसे कला में उतर पाना आसान नहीं है क्योंकि कबीर कोई ठहरा हुआ समय नहीं है, वह सतत प्रवाहित है। अतीत से वर्तमान तक कबीर एक परम्परा के रूप में उपस्थित हैं, एक ऐसी परम्परा जो लगातार विचारशील और आलोचनात्मक रहती है। इस प्रदर्शनी में शामिल कई क्लाकृतियों में कबीर की निर्भिक और आलोचनात्मक दृष्टि दिखाई देती है। प्रदर्शनी में वरिष्ठ कलाकार अर्पणा कौर की पेंटिंग शामिल है जो 1993 में रची गयी थी। अर्पणा कौर ने कबीर को लेकर पूरी एक श्रृंखला रची है जिसमें से एक चित्र यहां प्रदर्शित है। प्रदर्शनी में अपर्णा आनंद सिंह, माधुरी शर्मा, निताशा जैनी, पूजा मुदगल, सरला चंद्रा, संगीता गुप्ता, आराधना टंडन, शिखा गुप्ता, सुबिका लाल, अक्षत सिन्हा, सूची कालरा बुद्धिराजा, शास्वती चौधरी, चांदना भट्टचार्यजी और दुर्गा कैथोला के काम शामिल हैं। प्रदर्शनी में ज्यादातर काम संस्थापन कला और नवीन माध्यमों की कला है। निताशा जैनी की एक कृति स्टेनलेस स्टील और दूसरी एमडीएफ बोर्ड से कटिंग के जरिये रची गयी है जिसमें दर्पण का भी प्रयोग किया गया है। यह निताशा जैनी की पेंटिंग्स का विस्तार है जिसमें उन्होंने अपनी तरह से कबीर को समझा और दिखाया है। कबीर की रचनाएं सच को देखने-दिखाने का दर्पण हैं जिसका निताशा जी ने प्रभावशाली इस्तेमाल किया है। यह रचनाएं वर्तमान में कबीर की सार्थकता और प्रासंगिकता को उजागर करती हैं।
आराधना टंडन की दो पेंटिंग्स कबीर इन द गार्डन ऑफ लाइफ वर्तमान सभ्यता के संकटों की तरफ संकेत करती हैं। दुर्गा कैंथोला का शिल्प भी प्रभावित करता है। अक्षत सिन्हा का इंस्टालेशन माया मिश्रित माध्यम में रचा गया है जिसमें लकड़ी, दर्पण, मिट्टी, कपड़ा आदि शामिल हैं। कबीर की रचनाओं में प्रतिकात्मकता है उसका कलाकार ने बड़ी सूक्ष्मता से प्रयोग किया है। कबीर ने भी स्थूल जगत को केंद्र में रखते हुए उसकी सूक्ष्मतम स्थिति को देखने और दिखाने का काम किया है। कबीर में सिर्फ अध्यात्म नहीं है, उनमें जीवन के व्यावहारिक पक्ष भी हैं, उसमें शब्द ही नहीं, संगीत भी है, इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए अपर्णा आनंद सिंह ने प्रभावशाली इंस्टालेशन किया है। चांदना भट्टाचार्यजी की पेंटिंग पीस और पाथ ऑफ पीस अपने रंग संयोजन में कबीर जैसी उदातत्ता लिये हुए है।
माधुरी शर्मा का इंस्टालेशन हिया काया मा जूट, कपड़ा, मिट्टी के पॉट से बना है जो कबीर के पद झीनी झीना बीनी चदरिया को व्यक्त करता है। पूजा मुदगल की पेंटिंग्स में भी कबीर की चादर बुनने की प्रक्रिया केंद्र में है जिनमें उन्होंने जीवन से मृत्यु तक की यात्रा और अंतरमन के देव तत्व की खोज को व्यक्त किया है। संगीता गुप्त लंबे समय के कपड़े और जूट पर काम कर रही हैं। इससे पहले वह शिव के लेकर काम कर चुकी हैं। इसबार उन्होंने कबीर की रचनाओं को लेकर लेखन और चित्र, दोनों का मिश्रण करते हुए काम किया है जो प्रभावित करता है। शास्वती चौधरी ने कपड़े के कोलॉज और लिपि को संयुक्त करते हुए प्रभावशाली चित्र रचना की है जो आत्म और समय व समयातीत को व्यक्त करते हैं। सरला चंद्रा की एक पेंटिंग में कबीर का चेहरा है पर दूसरे कामों में उन्होंने अन्य लोगों के माध्यम से कबीर के विचारों को प्रत्यक्ष किया है। शिखा गुप्ता का इंस्टालेशन वाल्क विदइन प्रभावित करता है जिसमें उन्होंने लकड़ी, धागा, कपड़ा, मटका आदि के प्रयोग करते किया है। शुभिका लाल की कृति ए विवर्स सांग और लुक विदइन धागे, रस्सी से बुनाई शैली में कबीर के सत्व को सामने लाती हैं। शुची कालरा बुद्धिराजा का संस्थापन शिल्प कबीर के जीवन की निस्सारता के संदेश को व्यक्त करता है।
प्रदर्शनी में शामिल सभी कलाकारों ने इस बात को स्वीकार किया है कि कबीर की रचनाओं ने उन्हें प्रभावित और प्रेरित किया है। प्रदर्शनी में इंस्टालेशन की अधिकता इस बात का संकेत करती है कि सभी कलाकार एक नयी सोच और दृष्टि के साथ काम कर रहे हैं। इन कृतियों की एक विशेषता यह भी कही जाएगी कि इनपर कबीर के प्रभाव के साथ ही कबीर के उत्तर-प्रभाव के संकेत भी उपस्थित हैं। हालांकि कला के उत्तर प्रभाव हमेशा संदीग्ध रहे हैं क्योंकि कला, चाहे वह साहित्य हो या ललित कला, समाज पर किसी प्रकार का प्रभाव डाल पाते हैं, यह आज भी संदिग्ध है। इसके बाद भी यह प्रदर्शनी कम से कम कलाकारों पर प्रभाव डालेगी और उन्हें दूसरी दिशाओं में सोचने के लिए प्रेरित करेगी, इस बात की संभावना है।
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Amazing!!
ReplyDeleteTruly said that portraying kabir is not easy 👍🏼
अद्भुत कला कथ्य ll
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